कभी प्रीत राग गाऊँ
कभी खुद से लजाऊँ
कैसे इस बेकल जिया को समझाऊँ ,
हाय ! कैसी चली ये बयार
मन मोरा चकोर हुआ जाए रे .....
कभी सोचूँ मैं सबसे बताऊँ
कभी सोचूँ मैं सबसे छुपाऊँ
जाने मन में ये कैसी उमंग कैसी तरंग है
न जानू ये कोई जोग है
या प्रेम रंग है .......
ये उलझन जिया की कैसे सुलझाऊँ रे .... अंजलि पंडित ।
कभी खुद से लजाऊँ
कैसे इस बेकल जिया को समझाऊँ ,
हाय ! कैसी चली ये बयार
मन मोरा चकोर हुआ जाए रे .....
कभी सोचूँ मैं सबसे बताऊँ
कभी सोचूँ मैं सबसे छुपाऊँ
जाने मन में ये कैसी उमंग कैसी तरंग है
न जानू ये कोई जोग है
या प्रेम रंग है .......
ये उलझन जिया की कैसे सुलझाऊँ रे .... अंजलि पंडित ।
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