Sunday 27 April 2014

हमे तो शौक है फकीरी का ..........

हमे तो शौक है फकीरी का
क्योंकि बादशाही की नुमाइश हम देख आए हैं ,
जहां लूटी जाती है सोहबत ज़िंदगी से
वो रहाइस हम देख आए हैं ,
आईने में भी खुद की शक्ल
देखकर करते हैं गीले यार वो
कि हमसे ही तो नूर है जमाने का
गर ऐसी सूरत दिखाता है तो
जरूर कुछ कमी इस आईने में ही है ,
गैरों के हिस्से का निवाला चुराकर
करते हैं दावे दरिया दिली के जो
उन तमंगरों की तंग दिली हम देख आए हैं ।
हमे तो शौक है फकीरी का.......

उन गैरतमंदों की तरह हमे
पल-पल सवरना नहीं आता ,
जिन बस्तियों में मयस्सर नहीं है रोशनी
उनके रोशनदानों की धूप चुराकर
खुद ही निखरना नहीं आता ,
मशहूर तो हो जाते अजी हम भी बहुत
पर क्या करें...........
हमें हर रोज नए चेहरे बदलना नहीं आता ,
लगे हुये हैं जो हर पल नकाबपोशी  में
उन मुखौटों के पीछे के चेहरे हम देख आए हैं ।
जहां लूटी जाती है .............
हमे तो शौक है ...........

उन शीशे के बने महलों से
जहां दफन हैं हजारों दिलों की आहें ,
मुझे मिला ये सिर छुपाने का
ठिकाना बहुत अच्छा है ,
नहीं है दौलत और शौहरत तो न सही
पर ये मेरा दिल तो
सोने की तरह खरा - सच्चा है ,
गैरों की खातिर जान देने के दावे
करते हैं जज्बे यार जो ,
उन रहनुमाओं की दरियादिली हम देख आए हैं ।
जहां लूटी जाती है .......
हमे तो शौक है फकीरी का
क्योंकि बादशाही की नुमाइश हम देख आए हैं ॥

अंजलि पंडित ।