Wednesday 15 July 2015

चातक

प्यासा रहना सीख तभी तू चातक कहलाएगा 
तेरी बातें व्यर्थ , व्यर्थ है कोश स्नेह का सारा , 
जब तक ज्योति नहीं जगती 
तब तक जग अँधियारा , 
पहले जलना सीख - 
तभी तू दीपक कहलाएगा
प्यासा रहना सीख तभी तू चातक कहलाएगा ।
जब तक दिवस नहीं मिटता है
रात नहीं आती है ,
ग्रीष्म नहीं लुटता है तो-
बरसात नहीं आती है
प्यार लुटाये बिना न
उसका याचक कहलाएगा
प्यासा रहना सीख तभी तू चातक कहलाएगा ।
उर में ज्वार छुपाने पर भी
सिंधु सिंधु कहलाता
तिल तिल घुलकर बढ्ने पर भी
चाँद चाँद कहलाता ,
प्रण पर मिटना सीख
तभी तू साधक कहलाएगा
प्यासा रहना सीख तभी तू चातक कहलाएगा ।
ध्यान तभी सच्चा होता है
जब ध्यानी खो जाए
वह पूजा का फूल टूटकर जो
अर्पित हो जाए ,
कटना सीख तभी तू
बलिदानी मस्तक कहलाएगा ,
प्यासा रहना सीख तभी तू चातक कहलाएगा ॥

Tuesday 14 July 2015

मेरे मन को मन का मीत मिला है 
जैसे साँसों में संगीत घुला है 
करती हूँ महसूस उसे हर पल 
जीवन की वीणा धुन में 
अब आके कोई गीत मिला है 
उलझन- सुलझन के बीच फंसी हूँ
कुछ कह भी न पाऊँ
चुप रह भी न पाऊँ
विधि का कैसा अजब यह मेल मिला है । अंजलि पंडित ।