Friday 7 December 2012

आम आदमी


वाह ! वाह ! रे आम आदमी

तेरा भी जवाब नहीं.....

हों चाहे कितने ही शहँशाह

पर तुझसा कोई नवाब नहीं

लिया नाम जिसने भी

एक बार आम आदमी का

वो आम से खास हो गया

दे देकर हवाला जन विकास का

उसका विकास हो गया

पहना दिया कितनों के ही

सिर पे आम आदमी ने ताज

जिया न हो जो इनकी रहमत पे

ऐसा कोई हुकुमबाज़ नहीं ...

वाह ! वाह ! रे आम आदमी

तेरा भी जवाब नहीं.....

किसी ने भर ली जेब दे के

जन कल्याण की दुहाई

तो कभी इनको उबारने की

गुहार लगाई ....

खाते हैं सब लूट लूट के इनका ही

वो बात और है कि

है कोई एहसान नहीं

वाह ! वाह ! रे आम आदमी

तेरा भी जवाब नहीं.....

Thursday 6 December 2012

कागज के चंद रंगीन टुकड़े


कागज के चंद रंगीन टुकडों में

देखो ईमान बिक रहा है

जो विरासत थी हमारी कभी

वो संस्कार सरेआम लुट रहा है

अपने अस्तित्व का मान जहां

रखा जाता था हर पल

ममता की वेदी में न्योछावर था

सबका तन-मन.....

झुके नहीं थे वीर जहां के तोपों के आगे

स्वाभिमान की खातिर –

त्याग दिया जाता था जीवन

उसी भूमि पर आज हमारा

जीवन झुलस रहा है

कागज के चंद रंगीन टुकड़ो में

देखो ईमान बिक रहा है...

जिस संविधान की रचना की थी बाबा साहब ने

जिस राम-राज का सपना देखा था बापू ने

आज वह बस नेताओं की

स्वार्थ पूर्ति का साधन है

देखो संसद में इंसानों का सौदा हो रहा है

कागज के चंद रंगीन टुकड़ो में

देखो ईमान बिक रहा है...

बदल गयीं हैं जीवन की राहें

बदल गया है जीने का मतलब भी

आज सभी को चिंता है केवल अपने हित की

नहीं दिखाई देता है स्वाभिमान कहीं अब     

जहां देखि नोटों की हरियाली

वहीं शीश झुक रहा है ……

कागज के चंद रंगीन टुकड़ो में

देखो ईमान बिक रहा है...

जहाँ चाह है वहाँ राह है


खुद पास आता है चलकर के साहिल

मंजर की तरफ जरा कदम बढ़ा के तो देखो

जिंदगी की हर मंजिल कैसे बनती है महफिल


मंजिल की राहों में कदमों के पहरे बिछा के देखो

अपने ही हाथों मुकद्दर बनाना कोई बड़ी बात नहीं

हसरत के आईने में एक तस्वीर सजा के तो देखो

कैसे नसीब होती है ज़िंदगी की हर खुशी

गम के अँधेरों मे एक दीपक जला के तो देखो

ख्वाबों के रंगमहल को हकीकत बनाना भी आसान है

पहली आँखों में सपने सजा के तो देखो

जिंदगी का हर गम खुद दूर चला जाएगा

जरा दूसरों की खुशियों में मुस्कुरा के तो देखो         

अगर रोशन करना चाहते हो जिंदगी की हर घड़ी

तो गम के शोलों के बीच एक शमा जला के तो देखो......

नारी व्यथा


जन्मी तो थी मैं पंख लिए

पर उड़ने के लिए आसमां नहीं मिला

मिल सकें जहां निश्छल खुशियाँ

ऐसा जहाँ नहीं मिला ……

हर छोटी- छोटी खुशी की भी

कीमत पड़ी चुकानी बहुत बड़ी

जो समझे मेरी अनमोल कहानी

ऐसा जग में कोई नहीं मिला

चुप-चुप,पल-पल, हर क्षण, जीवन भर

रहा इंतज़ार बस एक सुनहरे पल का

बीत गया सारा जीवन ....

रीत गया मेरा आंचल.....

पर वो प्रीत भरा पल नहीं मिला .....

जन्मी तो थी मैं पंख लिए

पर उड़ने के लिए आसमां नहीं मिला 

धैर्य को तब मैंने पहचाना


आशा के स्वर्णिम पंख लिए

निज सपनों के संसार में

बढ़ती जा रही थी मैं प्रति क्षण

इस धरा विस्तार में

नन्ही परी थी ...

पर खोलना चाहती थी

अपने साहस की उड़ान से

गगन तोलना चाहती थी

अपनी ही धुन में मतवाला था मन

ख्वाबों की आभा से –

सजे थे नयन...

जीवन के हर दर्द से बेअसर थी

दुख कहते हैं किसको

मुझको खबर नहीं थी

इसी मतवाले पन में

एक दिन मैं चल रही थी

पाँव थे जमीं पर –

निगाहें गगन से मिल रही थीं

ठोकर लगी अचानक मुझे ...

मैं सहम गयी ,

गिर रही थी जमीं पर

गिरते हुये संभल गयी

सामने देखा एक निरीह बालक था

कातर निगाहें आँसू लिए...

कंकाल हड्डियों का

ठंड से कंपकपाता नीला बदन

धूल से सनी देह , सूने नयन

कुछ बोलना तो चाहता था

पर होंठ कांप रहे थे

शायद मैं कुछ बोलुंगी ....

कान ये भांप रहे थे,

फिर धीरे से बोला –

अब क्या खाऊँगा मैं....?

पूरे दिन कूड़े में ढूढा था ...

तब इतना भात मिला था ....

वो भी गिर गया ,

कल भी भूखा सोया था

क्या आज भी भूखा सो जाऊंगा मैं....?

मैं अवाक थी  .....

जैसे मिट्टी की मूरत थी ,

कुछ बोल सकूँ मुझमे ये क्षमता न थी

आंखो में आँसू ....

हृदय में एक पीड़ा उमड़ रही थी

धूल से सने एक-एक चावल को

शांत निगाहों से उसका देखना

याद दिला रहा था मुझे

किसी चीज के लिए

मेरा बेवजह मचलना .....

यूं तो उससे बड़ी ही थी मैं

पर धैर्य को तब मैंने पहचाना

सच क्या है दुनिया का

तब मैंने जाना......

मन चीख उठा मेरा

जाग उठे सोये जज़्बात

छोड़ दिया जीना खुशियों के लिए

अब करना है दीनो का कल्याण

जन-हित में अर्पण है मेरा-

तन-मन-जीवन और प्राण ........

आम आदमी


वाह ! वाह ! रे आम आदमी

तेरा भी जवाब नहीं..... 

हों चाहे कितने ही शहँशाह

पर तुझसा कोई नवाब नहीं

लिया नाम जिसने भी

एक बार आम आदमी का

वो आम से खास हो गया

दे देकर हवाला जन विका का

उसका विका हो गया

पहना दिया कितनों के ही

सिर पे आम आदमी ने ताज

जिया न हो जो इनकी रहमत पे

ऐसा कोई हुकुमबाज़ नहीं ...

वाह ! वाह ! रे आम आदमी

तेरा भी जवाब नहीं..... 

किसी ने भर ली जेब दे के

जन कल्याण की दुहाई

तो कभी इनको उबारने की

गुहार लगाई ....

खाते हैं सब लूट लूट के इनका ही

वो बात और है कि

है कोई एहसान नहीं

वाह ! वाह ! रे आम आदमी

तेरा भी जवाब नहीं.....