Monday 12 January 2015

लोग कहते हैं कि खुशकिस्मत हैं हम

क्योंकि हमारी राहों में अंधेरे नहीं हैं

अब कैसे बताएं उनको ........

कि इस रोशनी के लिए

कब से हम चिरागों की तरह

खुद ही जल रहे हैं ......... अंजलि पंडित । 
ऐसी हस्ती नहीं हमारी

जो मिटाने से मिट जाए

ये वो सर  नहीं जो

हर चौखट पे टिक जाए

मदिरालय और शिवालय में

अंतर करना आता है हमको

हम वो नहीं जो हर दर पे

सजदे करते जाएँ

वो और लोग होंगे

जो झूठी शान पे जीते हैं

अपनी शाख की खातिर हमको तो

शान से मरना आता है

एक चेहरे पर कई चेहरे लगाने की

फितरत नहीं है अपनी

हम वो नहीं जो

बनावटी शेरों से दर जाएँ ॥

अंजलि पंडित । 

ये कैसा भारत निर्माण ..... !

क्या जन-मानस में व्याप्त कलुषता
प्रमाण है इस बात का कि
भारत निर्माण हो रहा है ..... ?
इस समाज में .... हर परिमाण में ....
हर मन में बसी बेबसी ,
प्रमाण है इस बात का कि
भारत निर्माण हो रहा है ..... ?

हर कोमल मन को ....
दिल से लेकर अन्तः स्थल तक को
डसती गरीबी .....
प्रमाण है इस बात का कि
भारत निर्माण हो रहा है ..... ?

जिन रहनुमाओं को मिला ठेका
बेईमान पकड़ने का ....
बन न्याय के पहरेदार
अन्याय से लड़ने का ....
उन्ही हकीमों का बेईमान होना
क्या प्रमाण है इस बात का कि
भारत निर्माण हो रहा है ..... ?

चारो ओर भृष्ट तंत्र का बोल-बाला
अब नहीं होता मिलावट खोरों का मुंह काला
लूट रहा है आवाम को सत्ता का रखवाला
और गरीबों की खातिर हर पल
सुरसा की तरह मुंह फैलाती
मंहगाई की ज्वाला ......
प्रमाण है इस बात का कि
भारत निर्माण हो रहा है ..... ?

अरे !  ओ भोले भारत की भोली जनता
अब तो जागो नींद से ....
वरना सफ़ेद पोश में बैठे ये
अन्तर्मन के काले लोग
छीन लेंगे आँखों से हर सपना
और दूर कर देंगे हर उम्मीद से
अपना घर अब हमको स्वयं बचाना होगा
जिसमे अमन के फूल खिलें
जिससे खुशहाली के बीज मिलें
ऐसी फसल लगाना होगा
वरना मचता रहेगा इसी तरह ह्रास-त्रास
होता रहेगा मानवता का परिहास
और कहते रहेंगे ये दलाल
कि हो रहा है भारत निर्माण .....
और मेरा मन बेचैन सदा हो
करता रहेगा ये सवाल कि
नोटों के उछलते हुये बंडल
और संसद में मचता बवाल ही ,
प्रमाण है इस बात का कि
हो रहा भारत निर्माण ........!

ये कैसा भारत निर्माण ..... !
ये कैसा भारत निर्माण ..... !


क्या कहूँ इस देश की दशा ......

था जो राष्ट्रतंत्र लोकतन्त्र कभी
अब वो भृष्टतंत्र हो गया .......
क्या कहूँ इस देश की दशा
क्या से क्या हो गया

ये धरा थी जो वीर भोग्या कभी
आज सिर्फ इसे भीर भोगता है
भरूँ जेब अपनी मैं कैसे .......
बस यही दिन-रात सोचता है
दे - देके लहू अपना जिसे सीचा  था जवानों ने
आजादी के परवानों ने ....
बनाया था एक गुलसिता चमन में
देखो लोभियों के हाथों वो गुलसिता उजड़ गया
क्या कहूँ इस देश की दशा
क्या से क्या हो गया .........


कोशिश करने में कंजूसी क्यों ..... ?

माना जीवन की राहें लाख कठिन हैं

पर कोशिश करने में कंजूसी क्यों ...!

तुझे पता है कि हर मुश्किल का हल होता है

फिर चेहरे में ये मायूसी क्यों .....!

रात हमेशा नहीं ठहरती है

उजाले की किरण को उगना ही होता है

अँधियारा टिकता नहीं देर तक

उम्मीद की लौ को जगना ही होता है

हर राह की अपनी एक मंजिल होती है

फिर मेहनत करने में बदहोशी क्यों ...... !

कोशिश करने में कंजूसी क्यों ...............!

आओ भारत के भाग्य सवारें

आओ भारत के भाग्य सवारें
एक नई क्रांति का आह्वान करें
जो भविष्य हैं कल के भारत के
उनका हम निर्माण करें .......

हर जीवन की एक परिभाषा है
इन नन्ही आँखों में भी एक आशा है
आओ इनके सपनों को साकार करें
एक नई क्रांति का आह्वान करें .....

कल के भारत के ये हैं उजियारे
इस महा विरासत के रखवारे
इस कर्म भूमि के रक्षक है ये
आओ इन नन्हें दीपों में ज्योति भरें
एक नई क्रांति का आह्वान करें .....

आओ भारत के भाग्य सवारें
एक नई क्रांति का आह्वान करें ... ॥

अंजलि पंडित । 
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