Tuesday 9 July 2013

हो जाए तब-तक न देर प्रिए .....

साकी बाला के अधरों पर
कितने ही मधुर अधर हों बलिहार ,
पर वो तो कुछ पल का ही
होता है खेल प्रिए......
ये तो सारे मनचले कीट-पतंगे हैं,
परवाना तो होता है बस एक प्रिए ....
तुझको भ्रम होगा कि ये सब
तेरे संग इतराने वाले तेरे साथी हैं ....!
ये तो सब मेले संग जाने वाले हैं ,
सूनापन बहलाने वाले से
मत आंखे फेर प्रिए.......
पूंछ जरा मेरे मेरे दिल से कि -
तुझे गैरों संग देख इसपे क्या गुजरती है ,
भरी भीड़ मे भी तन्हा रहता हूँ मैं
पर तेरी तो कटती है
महफिल में हर शाम प्रिए ......
हालांकि ये बात पता है मुझको कि -
तेरी बातों में न सही
पर तेरे ख्वाबों में मैं ही हूँ ,
मुझे कचोट बस इतनी है कि
जब तक तू मेरा मोल करे
हो जाए तब-तक न देर प्रिए .....  

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