ऐसी हस्ती नहीं हमारी
जो मिटाने से मिट जाए
ये वो सर नहीं जो
हर चौखट पे टिक जाए
मदिरालय और शिवालय में
अंतर करना आता है हमको
हम वो नहीं जो हर दर पे
सजदे करते जाएँ
वो और लोग होंगे
जो झूठी शान पे जीते हैं
अपनी शाख की खातिर हमको तो
शान से मरना आता है
एक चेहरे पर कई चेहरे लगाने की
फितरत नहीं है अपनी
हम वो नहीं जो
बनावटी शेरों से दर जाएँ ॥
अंजलि पंडित ।
जो मिटाने से मिट जाए
ये वो सर नहीं जो
हर चौखट पे टिक जाए
मदिरालय और शिवालय में
अंतर करना आता है हमको
हम वो नहीं जो हर दर पे
सजदे करते जाएँ
वो और लोग होंगे
जो झूठी शान पे जीते हैं
अपनी शाख की खातिर हमको तो
शान से मरना आता है
एक चेहरे पर कई चेहरे लगाने की
फितरत नहीं है अपनी
हम वो नहीं जो
बनावटी शेरों से दर जाएँ ॥
अंजलि पंडित ।
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