Monday 12 January 2015

क्या कहूँ इस देश की दशा ......

था जो राष्ट्रतंत्र लोकतन्त्र कभी
अब वो भृष्टतंत्र हो गया .......
क्या कहूँ इस देश की दशा
क्या से क्या हो गया

ये धरा थी जो वीर भोग्या कभी
आज सिर्फ इसे भीर भोगता है
भरूँ जेब अपनी मैं कैसे .......
बस यही दिन-रात सोचता है
दे - देके लहू अपना जिसे सीचा  था जवानों ने
आजादी के परवानों ने ....
बनाया था एक गुलसिता चमन में
देखो लोभियों के हाथों वो गुलसिता उजड़ गया
क्या कहूँ इस देश की दशा
क्या से क्या हो गया .........


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