Thursday 6 December 2012

कागज के चंद रंगीन टुकड़े


कागज के चंद रंगीन टुकडों में

देखो ईमान बिक रहा है

जो विरासत थी हमारी कभी

वो संस्कार सरेआम लुट रहा है

अपने अस्तित्व का मान जहां

रखा जाता था हर पल

ममता की वेदी में न्योछावर था

सबका तन-मन.....

झुके नहीं थे वीर जहां के तोपों के आगे

स्वाभिमान की खातिर –

त्याग दिया जाता था जीवन

उसी भूमि पर आज हमारा

जीवन झुलस रहा है

कागज के चंद रंगीन टुकड़ो में

देखो ईमान बिक रहा है...

जिस संविधान की रचना की थी बाबा साहब ने

जिस राम-राज का सपना देखा था बापू ने

आज वह बस नेताओं की

स्वार्थ पूर्ति का साधन है

देखो संसद में इंसानों का सौदा हो रहा है

कागज के चंद रंगीन टुकड़ो में

देखो ईमान बिक रहा है...

बदल गयीं हैं जीवन की राहें

बदल गया है जीने का मतलब भी

आज सभी को चिंता है केवल अपने हित की

नहीं दिखाई देता है स्वाभिमान कहीं अब     

जहां देखि नोटों की हरियाली

वहीं शीश झुक रहा है ……

कागज के चंद रंगीन टुकड़ो में

देखो ईमान बिक रहा है...

2 comments:

  1. sundartam,jitni bhi tareef kijay kam hai..............
    Bhagwan aapki lekhani ko or dhardar banayen..
    yhi meri mangal kamna hai.

    Adarsh Tiwari,
    + 91 9636106938

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  2. Bahut sundar rachna,lekhan ki disha me aapko meri taraf se subh mangal kaamna


    Yogesh Tripathi
    +91 9554954273

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