वाह ! वाह ! रे आम आदमी
तेरा भी जवाब नहीं.....
हों चाहे कितने ही शहँशाह
पर तुझसा कोई नवाब नहीं
लिया नाम जिसने भी
एक बार आम आदमी का
वो आम से खास हो गया
दे देकर हवाला जन विकास का
उसका विकास हो गया
पहना दिया कितनों के ही
सिर पे आम आदमी ने ताज
जिया न हो जो इनकी रहमत पे
ऐसा कोई हुकुमबाज़ नहीं ...
वाह ! वाह ! रे आम आदमी
तेरा भी जवाब नहीं.....
किसी ने भर ली जेब दे के
जन कल्याण की दुहाई
तो कभी इनको उबारने की
गुहार लगाई ....
खाते हैं सब लूट लूट के इनका ही
वो बात और है कि
है कोई एहसान नहीं
वाह ! वाह ! रे आम आदमी
तेरा भी जवाब नहीं.....
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